Thursday 28 July 2016

आज वो मिले
कुछ उखड़े उखड़े से थे
कुछ नाराज़गी होगी |
पर हमसे?
मुमकिन नहीं !
सोचा पूछूँ, पर क्या
सोचा जाने दूं, पर कैसे
असमंजस में था |
खैर जाने दिया
अजनाबीयों सा उनको देख कर मुस्कुराया
वो भी हिचकिचाए-
कैसे हैं आप, और भाभी जी ?
अपनापन थोड़ा कम सा था
थोड़ी खटास सी थी
पर हमसे? क्यूँ भला ?
मालूम नहीं |
कुछ पल साथ रहे थे हम, पहले-
और अब हम यहाँ
उनका ठिकाना नहीं |
बेहतरीन शायरियाँ लिखते थे वो
अब नहीं लिखते शायद
अब कुछ आम आदमी सा काम करते हैं |
हम भी व्यस्त हैं
वो भी |
खुश तो हम भी नहीं हैं
पर खुश तो कोई भी नहीं है
वो भी नहीं |
वक्त है, गुज़र जाएगा !
गुज़रते गुज़रते |
अगली बार शायद वो दिखें
तो पहचाने पहचाने से लगें
या हो सकता है ना ही दिखें
क्या करना |
दिखें या ना
सुखी रहें| वो भी
और हो सके तो हम भी |

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