Saturday 27 June 2015

* टपरी वाला छोटू *

असल में वो जो टपरी वाला छोटू है
वो घर का बड़का लड़का है
माँ की सेहत खातिर वो दिन भर
मेहनत करता है
छोटी बहेन 'राखी' को वो
बड़े नाज़ों से रखता है|

भोर होते ही छोटू घर से निकल पड़ता है
कभी कभी तो रातों को वो
टपरी पर ही रहता है|

लाचार माँ अब काम पे ना जाती है
दिन भर खटिया पर पड़े पड़े
बाबा को बिसराती है,
राखी अभी छोटी है
वो दिन भर सखी संग ही रहती है
मन की हो तो
छोटू संग टपरी चलने को कहती है |

वो जो भी पाता है
घर के चूल्‍हे में ही जाता है
राखी के पढ़ाई का भी
जैसे तैसे हो जाता है|
बचा बचा कर छोटू ने गुलक्ख में
सोचा था नया बूशर्ट लेवेगा
पर फिर सोचा की अबकी सावन
राखी को नया फ्राक लेदेगा |

छोटू का सेठ कभी उसे ज़यादा पैसे दे देता है
तो कभी उसे बुरा भला भी कह देता है
सेठ बाबा का दोस्त था
छोटू की मजबूरी समझता है |

जो बच्चे टपरी पर आते हैं
कई उसे चिढ़ते हैं
कई उसे टीप मारते हैं
तो कई उसे दुलराते हैं |
छोटू खुश तो हो जाता है
पर कई बार ग़लती भी कर जाता है
किसी की चाय किसी को
किसी का नाश्ता किसी और को दे आता है |
कई बार डाँट खाने पर
छोटू घर को भाग जाता है
घर की हालत देख, आँसू पोंछकर
वापस टपरी को आ जाता है|

उसकी आँखों में अब
राखी के सपने पलते हैं
और बचे कुचे ख्वाबों में
बस माँ का दर्द सिमटता है
छोटू से जो बन पाता है
उससे ज़यादा ही वो करता है
छोटी सी उम्र में छोटू
बाबा की कमी पूरी करता है |

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