Sunday 8 February 2015

किसी रोज़ जब मैं
खुले आसमान तले
चाँदनी रात को
तारों में
तेरी प्रतिमा देखूँगा,
आँखे मूंद कर
तुझे करीब महसूस करूँगा,
बरसात की बूँदों को
खुद पर गिरने दूँगा,
खोल आँखे
खुद ही खुद पर हसूँगा,
और देर रात
कोयल के गान सुन कर
अकेले ही
पकड़ तेरी कलाई
थोड़ा मटकुंगा,
तुझे सोच कर
मुस्काउँगा -
सन्नाटो में 
तेरी खिलखिलाहट पाउँगा,
या लगा गले हवा को
बादलों से बतियाउँगा
खुद को जब मैं
बदला बदला पाउँगा
बस उसी रात मैं तुझको
प्रेम संदेशा भिजवाउँगा |

1 comment:

  1. Good work beta keep it up... God bless u.. Teri writing skills ne majboor kr diya mujhe tera blog khol k dekhne pr

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